
जितने आसमानी ख्वाब हैं इनमें सिमटे हुए,
उतनी ही हक़ीक़त को मापती गहराईयां भी…
कभी तो कह देती हैं वो सब जो कहना चाहती हैं,
और कभी छुपा लेती हैं जाने कितने ही राज़ गहरे…
कभी हिरण सी चंचलता,
कभी झील सा ठहराव…
खींचे कभी कशिश से अपनी ओर,
कभी दिखाती हैं हों जैसे कोई और…
देख के इनको अब और क्या देखें,
तुम्हारी ये दो खूबसूरत आँखें…